अलसाई सी सुबह है,और नशीली शाम।
देखो होली आ गई, ले खुशियां पैगाम।।
गौर वर्ण की राधिका,श्याम रंग घनश्याम ।
हरित वर्ण आभा हुई, सुन्दर ललित-ललाम।।
पिचकारी ले हाथ में,टोली निकली ग्वाल।
रंग डालते हैं सभी, करते बहुत धमाल।।
होली में तन -मन रंगें, खेलें रंग गुलाल।
होली के रंग में रंगे,रसिया करें कमाल।।
रंग खेलतीं राधिका,श्याम सखा के साथ।
हैं कपोल रंगे हुए, मीठी करतीं बात।।
कान्हा बरजोरी करें,दौड़ लगाते रंग।
राधा प्यारी भागतीं,निरख सभी हैं दंग।।
भंग – रंग सब पर चढ़ा,ग्वाले करें धमाल।
झूम- झूमकर कर रहे,”गौरा”बहुत कमाल।।
होली ऐसा पर्व है, सब मिलते हैं साथ।
गुझिया खाते प्रेम से, मीठी करते बात।।
प्रेम और सौहार्द्र से ,आप मनायें पर्व।
जिसे देखकर हो खुशी,होवे खुद पर गर्व।।
बाल-वृद्ध और रुग्ण को, नहीं लगायें रंग।
पड़ता न इससे कभी, बन्धु! रंग में भंग।।
पार्वती देवी “गौरा”, देवरिया