इटावा , 16 जून (वार्ता) दशकों तक आतंक के साए में रही चंबल घाटी में लुप्त प्रायः घड़ियालों के संरक्षण को 1975 में शुरू हुए क्रोकोडाइल कंजर्वेशन प्रोजेक्ट को आज 50 साल हो गए है। मात्र 38 अंडों के संकलन से शुरू हुए इस प्रोजेक्ट ने आज हजारों की संख्या में घड़ियालों को जीवनदान दे रखा है।
घड़ियालों को मिल रहे जीवनदान से जुड़ी इस योजना के प्रारंभिक समय से जुड़े कर्मी,अधिकारियों के साथ साथ वन्यजीव प्रेमियों में खासा उत्साह देखा जा रहा है। साल 1975 में शुरू हुए क्रोकोडाइल कंजर्वेशन प्रोजेक्ट से इटावा जिले के जीआई लाल, लाल चंद ओर निब्बू लाल 1976 में जुड़े जो अपनी पूरी सेवा करने के पश्चात सेवा मुक्त हो चुके है।
सभी चंबल नदी में घड़ियालों की बड़ी प्रगति को देख बेहद खुश और प्रफुल्लित होते हुए नजर आ रहे हैं।
उनका कहना है कि 1975 से पहले चंबल नदी में बड़े पैमाने पर मछलियों का शिकार किया जाता था और दुर्लभ वन्य जीवों की ओर कोई भी ध्यान नहीं देता था उस वक्त एक अनुमान के मुताबिक मात्र 200 की संख्या में ही घड़ियाल बचे थे। घड़ियालों की संख्या के लुप्त होने के चलते सरकार की ओर से 1975 में क्रोकोडाइल कंजर्वेशन प्रोजेक्ट की शुरुआत की गयी ।
पहली खेप के रूप में मात्र 38 अंडे लखनऊ के कुकरेल स्थित कृत्रिम प्रजनन केंद्र पर कतर्निया घाट से लाई गये उसके बाद चंबल नदी से भी अंडों को लखनऊ स्थित केंद्र पर ले जाया गया वहां से निकलने वाले बच्चों को तीन से 5 साल तक पोषित कर चंबल नदी में विचरण के लिये छोड़ा गया। इन 38 अंडों से प्रारंभ हुई परियोजना ने चंबल नदी को घड़ियालो से भरा पूरा कर दिया, एक अनुमान के मुताबिक चंबल नदी में आज की संख्या में करीब 3000 के आसपास घड़ियाल सुरक्षित बचे हुए हैं।
कभी चंबल सेंचुरी में रेंजर के रूप में सेवा कर चुके जीआई लाल बताते है कि घड़ियाल कंजर्वेशन प्रोजेक्ट से वह शुरुआती दौर से जुड़े हुए रहे है,आज उनके प्रोजेक्ट को 50 साल हो गए है ऐसे में यह उनके लिए विशेष खुशी का पल है।
उनका कहना है कि शुरुआती दिनों में बड़ी मुश्किल परिस्थितियों में इस प्रोजेक्ट को संचालित करके घड़ियालों को सुरक्षित करने की प्रक्रिया शुरू की गई जो आज एक भव्य स्वरूप में दिखाई दे रही है यह वाकई में हम सभी की मेहनत का ही नतीजा है।
चंबल सेंचुरी के फॉरेस्टर के रूप में सेवा मुक्त हो चुके लाल चंद बताते है कि क्रोकोडाइल कंजर्वेशन प्रोजेक्ट के तहत लखनऊ के कुकरेल सेंटर बच्चे लाकर चंबल नदी में छोड़े गए थे जो अब चम्बल नदी में भव्य स्वरूप में दिखाई दे रहे है।
उनका कहना है कि चंबल नदी में हालात इतने खराब थे कि शिकारी घड़ियालों को मारने के लिए गोली तक चलाया करते थे इस स्थिति को उस वक्त के कंजरवेटर विजय बहादुर के संज्ञान में लाया गया । जिसके बाद राष्ट्रीय चंबल सेंचुरी का खाका तैयार किया गया और एक प्रस्ताव केंद्र सरकार को बना कर भेजा गया जिस पर 1979 में उत्तर प्रदेश,मध्य प्रदेश और राजस्थान में प्रवाहित चंबल नदी को राष्ट्रीय चंबल सेंचुरी घोषित कर जलचरों का संरक्षण शुरु कर दिया गया ।
उन्होने कहा कि 2007 के आखिरी में घड़ियालों पर प्राकृतिक आपदा आई और करीब सवा सौ की संख्या में दुर्लभ घड़ियालों की मौत हुई, यह सब मेरी आंखों के सामने हुआ,इस वाक्ये को देख कर बड़ा दुख हुआ,जिनको अपने हाथों से बच्चे की तरह से पाला पोसा उनकी मौत आंखों के सामने होना शुरू हो गई और वे कुछ भी कर नहीं पाए, बेशक स्थानीय एनजीओ की शिकायत के बाद दुनिया भर के विशेषज्ञ, डॉक्टर घड़ियालों की इस आपदा का पता लगाने के लिए आए लेकिन नतीजा क्या निकाल कर के सामने आए यह बात तो किसी अधिकारी ने खुलकर कभी नहीं बताई लेकिन उस आपदा से धीरे धीरे करके मुक्ति मिल गई तो दर्द कुछ कम जरूर हो गया।
चंबल सेंचुरी में वोटमैन की सेवा से मुक्त हो चुके निब्बू लाल का कहना है कि घड़ियालों के जब बच्चे बालू में रहते थे तो उन्हें सुरक्षित रखने के लिए लोहे की जाली लगाई जाती थी और उसके बाद अंडे निकाल करके लखनऊ ले जाया करते थे और निर्धारित तापमान करके अंडे को सुरक्षित रखा जाता था। तब सबसे ज्यादा दुख हुआ जब चंबल में आपदा के चलते बड़ी संख्या में अपने पाले पोसे घड़ियालों की दर्दनाक मौत हुई।
नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा दिल्ली के बायोडायवर्सिटी कंसलटेंट डॉ.संदीप बेहरा का कहना है कि आज हम चंबल में घड़ियालों के संरक्षण का 50 वा साल मना रहे हैं, चंबल में घड़ियाल फल फूल रहे हैं। कभी विलुप्त के कगार पर खड़ा यह अनोखा जीव चंबल की लहरों में सुरक्षित फल फूल रहा है। यह सब सरकार, वन अधिकारियों,वैज्ञानिक और स्थानीय समुदाय के संयुक्त प्रयासों की वजह से संभव हुआ है। चंबल नदी में घड़ियालों का संरक्षण भारत में जैव विविधता के प्रतीक के रूप में गौरवशाली भविष्य का प्रमाण है।
वन्य जीवों की दिशा में सक्रिय सोसाइटी फॉर कंजर्वेशन का नेचर के महासचिव डॉ. राजीव चौहान बताते हैं कि 1975 में घड़ियालों की संरक्षण की परियोजना उत्तर प्रदेश और उड़ीसा में शुरू की गई। सबसे खास बात तो यह है कि चम्बल नदी से ही घड़ियालों के बच्चे देश के दूसरे हिस्सों में ले जा कर पाला जा रहा है। 1975 में शुरू हुई परियोजना के समय मात्र 200 घड़ियाल ही बचे थे ऐसी ही स्थिति पुनः साल 2007 ओर 2008 में आई आपदा के समय भी हो गई थी,जब बड़ी संख्या में दुर्लभ घड़ियालों की मौत हो गई थी।
इटावा के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि है कि इटावा से ही चंबल नदी होकर के गुजरती है और घड़ियालों का संरक्षण यहां पर बड़ी तादात में हो रहा है। चंबल स्वच्छ जल की नदी के रूप में पहचानी जाती है घड़ियाल मुख्य रूप से मछली खाने वाला जलचर है चंबल में घड़ियालों को पर्याप्त भोजन अच्छी तादात में मिलता है।
मध्य प्रदेश वन विभाग के एसडीओ डॉ.आर.के. शर्मा का कहना है कि घड़ियालों की घटती संख्या को लेकर 70 के दशक में अमेरिकी विशेषज्ञ वर्स्ट ने देश भर में सर्वे किया, सर्वे रिपोर्ट के आधार पर घड़ियालों का संरक्षण शुरू किया गया। देश की 80 फ़ीसदी घड़ियालों की आबादी अकेले चंबल नदी में पाई जाती है। घड़ियालों के संरक्षण के लिहाज से यह बेहतर उपलब्धि मानी जा रही है।
सबसे अहम बात तो यह है कि मगरमच्छ संवर्धन परियोजना के 50 साल पूरे हो चुके हैं लेकिन सरकार की ओर से कोई आयोजन न होना वन्य जीव प्रेमियों को कहीं ना कहीं निराश जरूर कर रहा है।