गोरखपुरए 30 मार्च (वार्ता) उत्तर प्रदेश के महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय गोरखपुर (एमजीयूजी) के
अंतर्गत संचालित संबद्ध स्वास्थ्य विज्ञान संकाय के तत्वावधान में सोसाइटी फॉर बायोटेक्नोलॉजिस्ट इंडिया
(एसबीटीआई) के सहयोग से “आयुर्वेद एवं बायोमेडिकल विज्ञान में जैव प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग” विषय पर
तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का शुभारंभ रविवार को हुआ।
उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में आईसीएमआर के पूर्व महानिदेशक और राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी
के अध्यक्ष पद्मश्री प्रो़ बलराम भार्गव का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ जबकि अध्यक्षता यूपी के मुख्यमंत्री के शिक्षा
सलाहकार एवं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के पूर्व चेयरमैन प्रो डीपी सिंह ने की।
उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए प्रो़ भार्गव ने कहा कि आयुर्वेद और बायोटेक्नोलॉजी से चिकित्सा के
क्षेत्र में वैश्विक नवाचार हो रहा है। आयुर्वेद की प्राचीन वैदिक चिकित्सा पद्धति और जैव चिकित्सा के समन्वय
से स्वास्थ सेवा समृद्ध और सशक्त हो रहा है। इससे मानवता के लिए एक उज्जवल भविष्य का मार्गदर्शन
प्रशस्त हुआ है।
उन्होंने कहा कि आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के विकास में जैव प्रौद्योगिकी का योगदान बहुत महत्वपूर्ण
रहा है। जैव प्रौद्योगिकी ने न केवल स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में क्रांतिकारी बदलाव किए हैं बल्कि आयुर्वेद में
भी इसके अनुप्रयोग ने नई संभावनाओं का द्वार खोला है। आयुर्वेद जीवन और स्वास्थ्य के लिए एक व्यापक
दृष्टिकोण प्रदान करता हैए अपनी जड़ों से जुड़े हुए प्राकृतिक उपचारों को महत्वपूर्ण मानता है। वहीं जैव
प्रौद्योगिकी, जीवों और उनके घटकों का उपयोग करके विभिन्न चिकित्सा उत्पादों का विकास करती है।
प्रो़ भार्गव ने युवाओं का आह्वान करते हुए कहा कि भारत ने अन्न उत्पादन, दूध उत्पादन, आईटी,मोबाइल, हेल्थकेयर और अंतरिक्ष के क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास हुआ है। अब बारी जैव प्रौद्योगिकी एवं आयुर्वेद को नई ऊंचाई पर ले जाने की है। उन्होंने कहा कि दुनिया में कोविड 19 के प्रकोप के दौरान भारत ने इंडीजिनस वैक्सीन बनाकर दुनिया की स्वास्थ सेवा को संजीवनी दी।
सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए प्रो़ डीपी सिंह ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा से संस्कार और राष्ट्र सेवा का भाव जागृत होता है। 21वीं सदी में स्वास्थ सेवा में प्राचीन आयुर्वेदए यूनानी और जैव प्रौद्योगिकी ने पुरातन और नए नवाचारों से मानव सेवा का पवित्र संकल्प पूरा किया है। उन्होंने कहा कि पुरातन स्वास्थ्य सेवा का अध्ययन कर नई चिकित्सा पद्धति में आयुर्वेदए योगए यूनानी का गहन अध्ययन कर भारतीय शिक्षा पद्धति को समृद्ध करने का प्रयास होना चाहिए।
प्रो़ सिंह ने कहा कि बाटेक्नोलॉजी में नए शोधए नवाचार और सृजन से अन्वेषकीय कार्य हो रहे है। इस सम्मलेन में जैव प्रौद्योगिकी चिकित्सा और आयुर्वेद के संभावनाओं को तलाशने का अवसर मिलेगा पर वैश्विक समय में जो नई चुनौतियां हमारे सामने आएंगीए उन्हें नए संकल्पों के साथ स्वीकार करना होगा। ?उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति व्यक्तित्व विकास के संकल्पों को विकसित करता है।
सम्मेलन को संबोधित करते हुए महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय गोरखपुर के कुलपति प्रो़ डॉ़ सुरिंदर
सिंह ने कहा कि यह सम्मेलन उभरते वैज्ञानिक रुझानों और नवाचारों को समझने तथा शोधकर्ताओं को आपस में संवाद का मंच प्रदान करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। यह सम्मेलन जैव प्रौद्योगिकी, औद्योगिक सूक्ष्म जीवविज्ञान, पर्यावरणीय जैव प्रौद्योगिकी, नैनो बायोटेक्नोलॉजी और बायोइन्फॉर्मेटिक्स जैसे विषयों पर केंद्रित रहेगा। उन्होंने उम्मीद जताई कि यह आयोजन जैव प्रौद्योगिकी और सूक्ष्म जीवविज्ञान अनुसंधान में नए आयाम स्थापित करेगा।
उद्घाटन सत्र में प्रो़ सुभाष चंद्र लखोटिया, प्रो़ चंचाई बूनला, प्रो़ एडाथिल विजयन ने भी प्रतिभागियों को शुभकामनाएं दीं।
सम्मेलन में अतिथियों ने महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय गोरखपुर के कुलसचिव डॉ़ प्रदीप कुमार राव के
महाकुंभ पर केंद्रित पुस्तक और प्रो़ सुनील कुमार सिंह द्वारा संपादित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की शोध संदर्भ पुस्तिका का विमोचन किया। महायोगी गुरु गोरखनाथ आयुष विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोण् के रामचंद्र रेड्डी ने पुस्तकों के सार को व्याख्यायित किया ।
अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान देने के लिए सोसाइटी फॉर बायोटेक्नोलॉजिस्ट इंडिया की तरफ से बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में डिपार्टमेंट ऑफ जूलोजी के एमेरिटस प्रो़ सुभाष चंद्र लखोटिया को लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड और स्कूल ऑफ लाइफ साइंस नार्थ ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी शिलांग के पूर्व अधिष्ठाता प्रो ण्रमेश शर्मा को पद्मश्री बलराम भार्गव और प्रो डॉ़ धीरेंद्र पाल सिंह ने डीएस पाउले ओरेशन अवार्ड से सम्मानित किया। सोसाइटी अवॉर्ड की घोषणा एसबीटीआई के अध्यक्ष प्रोण् एडथिल विजयन ने ने किया।
सम्मेलन के प्रथम तकनीकी सत्र से पूर्व मुख्य उद्बोधन में आयुर्वेद एवं जैव विज्ञान के अंतर्संबंधों पर मार्गदर्शन करते हुए प्रो़ सुभाष चंद्र लखोटिया ने कहा कि आयुर्वेद को वैज्ञानिक पद्धति से सत्यापित करके इसके प्रभावी पहलुओं को अपनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि पारंपरिक ज्ञान को वैज्ञानिक ढंग से समझने के लिए एक अग्रगामी, निष्पक्ष और समावेशी दृष्टिकोण आवश्यक है। सम्मेलन में उपस्थित शोधार्थियों और विशेषज्ञों ने इन महत्वपूर्ण विषयों पर अपने शोध पत्र भी प्रस्तुत किए और जैव प्रौद्योगिकी में नए अवसरों को लेकर गहन चर्चा की।
सम्मेलन के तकनीकी सत्र के पहले व्याख्यान में चुलालोंगकोर्न विश्वविद्यालय बैंकाक में चिकित्सा संकाय के प्रो़ चांचाई बूनला ने आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी के उपयोग से नई औषधियों के विकास की संभावनाओं को रेखांकित किया। इस सत्र की अध्यक्षता प्रोण् दिनेश यादवए सह.अध्यक्षता डॉण् रामवंत गुप्ता ने की एवं प्रतिवेदन डॉण् अंकिता मिश्रा ने प्रस्तुत किया। द्वितीय व्याख्यान में कोलंबो विश्वविद्यालय की प्रोण् सुमादी डी सिल्वा ने विज्ञान के रहस्य और उसके उपयोगिता पर जानकारी दी। तृतीय व्याख्यान आयुर्वेद और औषधीय पौधों के अनुसंधान के बीच अंतर प्रबंधन विषय पर केंद्रित रहा। इसमें काठमांडू विश्वविद्यालय के प्रो़ जनार्दन लामिछाने ने अन्वेषकीय दृष्टि से अपनी बात रखी। चतुर्थ व्याख्यान आणविक जीव विज्ञान केंद्र, हैदराबाद के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ़ जनेश दुबे ने दिया। उन्होंने जैव प्रौद्योगिकी चिकित्सा पद्धति पर विस्तार से शोधार्थियों का मार्गदर्शन किया।