देवरिया,25 फरवरी (वार्ता) पूर्वी उत्तर प्रदेश में देवरिया से करीब 20 किमी दूर रूद्रपुर में स्वयं भू शिवलिंग का दुग्धेश्वर नाथ मंदिर छोटी काशी के के रूप से प्रसिद्ध है। यहाँ का शिवलिंग अपनी विशेषता के लिए प्रसिद्ध है।
दुग्धेश्वर नाथ मंदिर के महन्थ रमाशंकर भारती कहते हैं कि यह मंदिर 11वीं सदी में अष्टकोण में बना हुआ है।इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग का आधार कहां तक है इसका आज तक पता नहीं चल पाया। मान्यता है कि मंदिर में स्थित शिवलिंग की लंबाई पाताल तक है। आज भी भक्त शिवलिंग के स्पर्श करने के लिए 14 सीढ़ियां नीचे उतरकर पूजा अर्चना करते हैंं। इस मंदिर के वर्तमान स्वरुप का निर्माण तत्कालीन रूद्रपुर सतासी नरेश हरी सिंह ने करवाया था। जिनका संभवत: सत्तासी कोस में साम्राज्य स्थापित था।
रमाशंकर भारती के मुताबिक, यह मंदिर ईसा पूर्व के ही समय से यहां है। उनका कहना है कि पुरातत्व विभाग के पटना कार्यालय में भी नाथ बाबा के नाम से प्रसिद्ध इस मंदिर के संबंध में उल्लेख मिलता है। इस मंदिर को महाकालेश्वर उज्जैन की भांति इसे पौराणिक महत्ता प्रदान की गई है। यह उनका उपलिंग है। यह शिवलिंग को किसी मनुष्य ने नहीं बनाया, बल्कि वे स्वयं धरती से प्रगट हुए हैं। यहाँ का शिवलिंग त्रयंबकेश्वर भगवान के बाद धरातल से करीब 15 फीट अंदर है। बताया जाता है कि इस मंदिर में स्थित शिव लिंग की लंबाई पाताल तक है।
प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेन सांग ने भी जब भारत की यात्रा की थी, तब वह देवरिया के रुद्रपुर में भी आए थे। उस समय मंदिर की विशालता एवं धार्मिक महत्व को देखते हुए उन्होंने चीनी भाषा में मंदिर परिसर के दीवार पर कुछ टिप्पणी अंकित की थी,जो आज भी अस्पष्ट रुप से दृष्टिगोचर होती है। कई इतिहासकारों ने उस लिपि को पढ़ने की चेष्टा की,लेकिन सफल नहीं हो पाए।
मंदिर के बारे में पौराणिक कथा है कि यहां पहले कभी घना जंगल हुआ करता था।आज जहां यह शिवलिंग हैं।वहां नित्य प्रतिदिन एक गाय प्राय: आकर खड़ी हो जाती थी तथा उसके थन से अपने आप वहां दूध की धारा गिरने लगती थी। इस बात की जानकारी तत्कालीन रुद्रपुर नरेश हरी सिंह के कानों तक पहुंची तो उन्होंने वहां खुदाई करवाई। खुदाई में शिवलिंग निकला। राजा ने सोचा कि शिवलिंग को निकालकर इसकी स्थापना की जाए।जैसे-जैसे मजदूर शिवलिंग निकालने के लिए खुदाई करते जाते वैसे वैसे यह शिवलिंग जमीन में धंसते चले जाते थे।
महन्थ रमाशंकर भारती ने बताया कि उस समय शिवलिंग तो नहीं निकला वहां एक कुआं जरूर बन गया। बाद में राजा को रात में एक स्वप्न दिखा। जिसमें वहीं पर मंदिर स्थापित करने के लिए कहा गया। स्वप्न की बात राजा ने विद्धान पंडितों को बताई और वहाँ स्वप्न में मिले आदेश पर काशी से विद्धान पंडितों को आग्रह पूर्वक बुलवाकर राजा ने वहां धूमधाम से भगवान शंकर के इस लिंग की विधिवत स्थापना करवाई। मान्यता है कि यहां दर्शन करने मात्र से लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है।
वैसे तो यहाँ हर समय भक्तों की भीड़ लगी रहती है। लेकिन विशेषकर शिवरात्रि और श्रावण मास में हजारों भक्त जिसमें नेपाल और पड़ोसी राज्य बिहार के भक्त बाबा के दर्शन पूजन के लिए आते हैं। शिवरात्रि में यहाँ एक मेला भी लगता है। जिसमें दूर दूर से आये व्यापारी अपनी दुकान भी लगाते हैं।