चंबल में प्रवासी पक्षियो की 50 फीसदी गिरावट से पर्यावरणीय चिंताग्रस्त
इटावा , 09 दिसंबर (वार्ता) सर्दियों के मौसम में हमेशा गुलजार रहने वाली चंबल घाटी में इस दफा मौसमी संतुलन के चलते प्रवासी पक्षियों की तादात में 50 फीसदी तक की गिरावट देखी जा रही है। यह गिरावट पर्यावरणविदियों के लिए चिंता का विषय बनी हुई है।
चंबल घाटी में प्रवासी पक्षियों के सर्वेक्षण के बाद पर्यावरण संस्था सोसायटी फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर के महासचिव डॉ राजीव चौहान ने यूनीवार्ता को बताया कि मौसमी संतुलन का यह असर देखा जा रहा है कि कभी चंबल घाटी में बड़ी तादाद में प्रवासी पक्षियों का आना हुआ करता था लेकिन इस दफा प्रवासी पक्षियों की संख्या में बड़ी तादात में गिरावट देखी जा रही है। अनुमान लगाया जा रहा है कि 50 फ़ीसदी के आसपास प्रवासी पक्षियों की संख्या में यह गिरावट आई है।
उन्होंने बताया कि उनकी संस्था के प्रतिनिधियों की ओर से विभिन्न स्थानों से लिए गए सर्वेक्षण रिपोर्ट में यह बात सामने आ रही है कि जो प्रवासी पक्षी दूसरे देशों से कड़ाके की सर्दी के बीच चंबल घाटी में आया करते थे उनकी संख्या में एक अनुमान के मुताबिक 50 फ़ीसदी के आसपास गिरावट आई है।
प्रवासी पक्षियों की संख्या में गिरावट के पीछे बड़ी वजह मौसम के असंतुलन को माना जा रहा है और यह संतुलन कहीं ना कहीं बड़ा संकट चंबल की खूबसूरती को लेकर के खड़ा होता हुआ भी दिखाई दे रहा है। उन्होंने बताया कि नैसर्गिक सौंदर्य का प्रतीक चंबल घाटी को माना जाता है लेकिन जब कड़ाके की सर्दी के बीच दूसरे देशों के बड़ी तादाद में प्रवासी पक्षी पहुंच जाते हैं तो इस खूबसूरती में चार चांद लग जाता है लेकिन इस दफा चंबल की खूबसूरती कहीं ना कहीं प्रवासी पक्षियों की गिरावट से दागदार होती हुई दिखाई दे रही है।
कुख्यात डाकुओं के आतंक से कभी जूझती रही चंबल घाटी प्रवासी पक्षियों के भ्रमणशील होने से खासी गुलजार रही है लेकिन अब ऐसा नहीं देखा जा रहा है।
उनका कहना है कि नवंबर माह से ही पक्षियों के आने की शुरुआत एक अच्छा संकेत जरूर माना जाता है लेकिन प्रवासी पक्षियों की बड़ी तादात में गिरावट से स्थानीय लोगों में खासी चिंता भी देखी जा रही है।
चम्बल सेंचुरी में अफगानिस्तान, पाकिस्तान, श्रीलंका तथा म्यांमार से विदेशी पक्षी आते है लेकिन उनकी जो संख्या पिछले समय देखी जाती रही है उसमें 50 फ़ीसदी के आसपास गिरावट ने पर्यावरणप्रेमियों को चिंता ग्रस्त कर दिया है।
करीब 425 किलोमीटर क्षेत्रफल में पसरी इस सेंचुरी में प्रवासी पक्षियों की संख्या पहले की माफिक इस दफा नहीं देखी जा रही है। चंबल में हवासीर (पेलिकन), राजहंस (फ्लेमिंगो), समन (बार हेडेटबूल) जैसे विदेशी पक्षी मार्च तक आते है लेकिन अबकी दफा तापमान के उतार चढ़ाव से इन पक्षियों की संख्या में बड़ी गिरावट आई है।
प्रवासी पक्षियों की संख्या में आई व्यापक गिरावट से यहां आने वाले पर्यटक भी मायूस बने हुए हैं उनका ऐसा मानना है कि जो उम्मीद उन्होंने करके रखी हुई थी वह उम्मीद उनकी पूरी होती हुई नहीं दिख रही है।
दुर्लभ जलचरों के सबसे बड़े संरक्षण स्थल के रूप में अपनी अलग पहचान बनाये चंबल सेंचुरी में बेशक पर्यटक पहले की तरह ही आ रहे हैं लेकिन उनको इस दफा प्रवासी पक्षी पहले की तरह नजर नहीं आ रहे हैं जिससे पर्यटक भी पर्यावरण प्रेमियों की तरह चिंता ग्रस्त बने हुए हैं
चंबल सेंचुरी से जुड़े बड़े अफ़सर ऐसा मान करके चल रहे हैं कि 3 राज्यों में फैली चंबल सेंचुरी का महत्व इतना है कि चंबल सेंचुरी में डॉल्फिन, घड़ियाल, मगर और कई प्रजाति के कछुए तो हमेशा रहते है।
उन्होंने बताया कि इस बार प्रवासी पक्षियों में कामनटील, नार्दन शिवेलर, ग्रेट कारमोरेंट, टफटिड डक, पोचार्ड आदि दर्जनों प्रजातियों के सुंदर संवेदनशील पक्षी यहां पहुंच चुके हैं, लेकिन जो संख्या पहले हुआ करते थे लेकिन अब नहीं दिख रही है।
उनका कहना है कि जिन प्रमुख स्थानों पर जहां हजारों की तादाद में प्रवासी पक्षी नजर आया करते थे अब वहां पर सैकड़ो की संख्या भी नहीं दिखाई दे रही है ऐसी स्थिति के लिए बदलते मौसम ही बड़ा जिम्मेदार माना जा रहा है।
चकरनगर के रहने वाले मुकेश यादव ऐसा मान करके चल रहे हैं कि कड़ाके की सर्दी के मौसम में बड़ी संख्या प्रवासी पक्षियों की चंबल में दिखाई देती थी जो अब नहीं दिखाई दे रही है प्रवासी पक्षियों की यह गिरावट निश्चित तौर पर हम सभी के लिए चिंता का सबक बन रही है। उनका कहना है की चंबल घाटी का सौंदर्य प्रवासी पक्षियों के कारण करके की सर्दी के दरमियान होता है लेकिन अब की दफा प्रवासी पक्षी पहले की माफिक नजर नहीं आ रहे हैं। पहले प्रवासी पक्षी झुंड के झुंड चंबल में दिखाई करते थे लेकिन इस दफा ना के बराबर प्रवाशी पक्षी दिख रहे है।