लड़ाईयों के बेहद तेज होने से एक से दो मिनट में भेदा जा रहा है लक्ष्यों को
नयी दिल्ली 27 सितम्बर (वार्ता) सेना का कहना है कि रणक्षेत्र में लड़ाईयां निरंतर तीव्र होती जा रही हैं जिससे लक्ष्य भेदने का समय निरंतर कम हो रहा है और जहां पहले लक्ष्य की पहचान कर उसे भेदने में आठ से नौ मिनट लग जाते थे अब उसमें एक से दो मिनट का समय लग रहा है।
सेना में आर्टिलरी यानी तोपखाना इकाई के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल अदोष कुमार ने शनिवार को 198 वें आर्टिलरी दिवस से पहले मीडिया के साथ बातचीत में कहा कि बदलते समय की जरूरतों को देखते हुए आर्टिलरी बहुत तेजी से आधुनिकीकरण कर रही है। उन्होंने कहा, “ हम पहले से कहीं अधिक गति से और निर्धारित समय-सीमा के अनुसार आधुनिकीकरण कर रहे हैं। हमारी आधुनिकीकरण और क्षमता विकास योजना ‘आत्मनिर्भरता’ अभियान से जुड़ी है और ‘स्वदेशीकरण के माध्यम से आधुनिकीकरण’ के सिद्धांत पर आधारित है। ”
रूस और यूक्रेन के बीच दो वर्ष से भी अधिक समय से चले आ रहे युद्ध के संदर्भ में भविष्य के युद्धों के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि इसका अनुमान लगाना कठिन है क्योंकि यह उस समय की भू-राजनीतिक स्थिति पर निर्भर रहेगा लेकिन यह कहा जा सकता है कि भविष्य के युद्ध जटिल, हाइब्रिड, मल्टीडोमेन और अत्यधिक तीव्रता वाले तथा भीषण होंगे। उन्होंने कहा कि इनकी भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि रणक्षेत्र में एक साथ दस ऑपरेशन चल रहे होंगे।
ले. जनरल ने कहा कि भविष्य के युद्धों में प्रौद्योगिकी की महत्वपूर्ण भूमिका होगी और इसका अत्यधिक इस्तेमाल होगा। सेनाएं अंतरिक्ष प्रणालियों का अधिक से अधिक दोहन करेंगी तथा इलेक्ट्रानिक युद्ध प्रणाली भी लड़ाई का अहम हिस्सा होगी। उन्होंने कहा कि इसके अलावा लड़ाईयों का परिणाम खुफिया जानकारी , टोही और निगरानी अभियानों की सफलता तथा सटीकता पर भी निर्भर करेगा। उन्होंने कहा कि भविष्य में पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थित छोटे उपग्रहों के समूह के इस्तेमाल की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता।
उन्होंने कहा कि अभी लड़ाईयां इतनी तेज हो गयी हैं कि लक्ष्य को भेदने का समय कम होकर एक से दो मिनट हो गया है जो पहले 8 से 9 मिनट होता था। अब प्रौद्योगिकी और आर्टिफिसियल इंटेलीजेंस के इस्तेमाल से लक्ष्य का पता लगाकर उस पर फायर करने में बहुत तेजी आ गयी है। उन्होंने कहा कि भारतीय सेना भी अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर रही है। अभी सेनाएं हथियार को दागने के बाद लक्ष्य के अनुसार उसके मार्ग को बदलने यानी ‘मिड कोर्स करेक्शन’ वाले हथियारों पर भी काम कर रही हैं।
ले. जनरल कुमार ने कहा कि रूस- यूक्रेन युद्ध तथा इजरायल-फलस्तीन संघर्ष से गोला बारूद की वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला बहुत अधिक प्रभावित नहीं हुई है। उन्होंने कहा कि रूस का गोला बारूद का वार्षिक निर्माण बहुत अधिक है। उन्होंने कहा कि अभी लड़ाई में रूस प्रतिदिन 10 से 15 हजार गोले दाग रहा है जबकि यूक्रेन की ओर से तकरीबन 4 हजार गोले दागे जा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि भारत में भी अत्याधुनिक गोला बारूद बनाने की क्षमता को निरंतर बढाया जा रहा है और इसके लिए अब निजी क्षेत्र का भी सहयोग लिया जा रहा है। निजी वेंडरों से सेना के लिए गोला बारूद खरीदे जाने की प्रक्रिया चल रही है।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि शहरी क्षेत्रों में नयी फील्ड फायरिंग रेंज के लिए भूमि की पहचान करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है लेकिन सेना नयी फायरिंग रेंज स्थापित कर रही हैं। उन्होंने कहा कि अभी सेना ने अरूणाचल प्रदेश में त्वांग के निकट नयी फायरिंग रेंज बनायी है। सेना के पास अब तक ऊंचे क्षेत्रों में फायरिंग रेंज नहीं थी और इसका आगे चलकर सेना को काफी लाभ मिलेगा। उन्होंने कहा कि देश के उत्तरी हिस्सों में भी और फायरिंग रेंज के लिए भूमि की पहचान की जा रही है। उन्होंने कहा कि सेना के जवान निरंतर फायरिंग अभ्यास कर रहे हैं और अयोध्या के निकट तथा कुछ अन्य फायरिंग रेंज को गैर अधिसूचित किये जाने के बावजूद सेना में फायरिंग अभ्यास की प्रक्रिया प्रभावित नहीं हुई है।
पिनाका राकेट लांचर को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की सफलता की कहानी करार देते हुए उन्होंने कहा कि यह प्रणाली पूरी तरह सफल रही है और अब इसकी मार करने की क्षमता को दोगुना करने की दिशा में कार्य किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि आर्टिलरी रेजिमेंट में अल्ट्रा-लाइट हॉवित्जर (यूएलएच), के-9 वज्र, धनुष और शारंग सहित कई 155 मिमी कैलिबर बंदूकें और हॉवित्जर तोपें शामिल की गई हैं। यूएलएच को उत्तरी सीमाओं पर तैनात किया गया है। इनका वजन हल्का होता है और इन्हें हेलीकाप्टरों द्वारा ले जाया जा सकता है। के-9 वज्र गन सिस्टम मशीनीकृत संचालन के लिए आदर्श है। धनुष तोपें बोफोर्स तोपों का इलेक्ट्रॉनिक अपग्रेड हैं, जबकि शारंग गन सिस्टम को 130 मिमी से 155 मिमी कैलिबर तक उन्नत किया गया है। निकट भविष्य में अधिक संख्या में के-9 वज्र, धनुष और शारंग तोप प्रणालियों को शामिल किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सेना उन्नत टोड आर्टिलरी गन सिस्टम (एटीएजीएस), माउंटेड गन सिस्टम (एमजीएस) और टोड गन सिस्टम (टीजीएस) को शामिल करने के लिए अन्य 155 मिमी गन सिस्टम को भी शामिल करने की प्रक्रिया में हैं।
ले. जनरल ने कहा कि सेना को हर तरह के युद्ध के लिए तैयार रखने के लिए आर्टिलरी की क्षमता निरंतर बढायी जा रही है जिससे कि वह चुनौतियों और खतरों से आगे रहकर उनका मुकाबला कर सके।