लेख

डॉलर और रुपया-कौन भारी

(अजय दीक्षित)
हाल ही में अमेरिका के केन्द्रीय बैंक फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दर में इजाफा किए जाने और मौद्रिक नीति को आगे और भी सख्त बनाए जाने के संकेत के साथ साथ 5 अक्टूबर को तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक के द्वारा तेल उत्पादन में भारी कटौती पर जिस तरह सहमति व्यक्त की गई है, उससे 7 अक्टूबर को डॉलर के मुकाबले रुपया रिकॉर्ड निचले स्तर पर लुढककर 82.33 पर पहुंच गया । रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से रुपए में यह सबसे बड़ी गिरावट है । स्थिति यह है कि अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये की ऐतिहासिक गिरावट के बाद कई भारतीय कंपनियां इससे बचने के लिए फॉरवर्ड कवर की कवायद में हैं, क्योंकि उन्हें चिन्ता है कि फेडरल रिजर्व के ताजा संकेत से इसी वर्ष 2022 में ब्याज दर में और इजाफा हो सकता है, जिससे डॉलर और मजबूत होगा । निश्चित रूप से रूस – यूक्रेन युद्ध के बाद अब चीन ताइवान के बीच तनाव और वैश्विक आर्थिक मंदी की आशंकाओं के बीच जिस तरह उससे डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत में बड़ी फिसलन से जहां इस समय भारतीय अर्थव्यवस्था की मुश्किलें बढ़ रही हैं, वहीं आर्थिक विकास योजनाएं प्रभावित हो रही हैं । विदेशी मुद्रा भंडार 30 सितम्बर को दो साल के निचले स्तर पर घटकर 533 अरब डॉलर रह गया है । इतना ही नहीं महंगाई से जूझ रहे आम आदमी की चिंताएं और बढ़ती हुई दिखाई दे रही हैं । उर्वरक एवं कच्चे तेल के आयात बिल में बढ़ोतरी होगी। अधिकांश आयातित सामान महंगे हो जायेंगे । यद्यपि रुपए की कमजोरी से आईटी, फार्मा, टेक्सटाइल जैसे विभिन्न उत्पादों के निर्यात की संभावनाएं बढ़ी हैं, लेकिन अधिकांश देशों में मंदी की लहर के कारण निर्यात की चुनौती दिखाई दे रही है । वस्तुत: डॉलर के 1 मुकाबले रुपये के कमजोर होने का प्रमुख कारण बाजार में रुपये की तुलना में डॉलर की मांग बहुत ज्यादा हो जाना है । वर्ष 2022 की शुरुआत ही संस्थागत विदेशी निवेशक (एफआईआई) बार-बार बड़ी संख्या में भारतीय बाजारों से पैसा निकालते हुए दिखाई दिये हैं । ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व के द्वारा अमेरिका में ब्याज दरें बहुत तेजी से बढ़ाई जा रही हैं । दुनिया के कई विकसित देशों के द्वारा भी ब्याज दरें तेजी से बढ़ाई जा रही हैं । ऐसे में भारतीय शेयर बाजार में निवेश करने के इच्छुक निवेशक अमेरिका सहित अन्य विकसित देशों में अपने निवेश को ज्यादा लाभप्रद और सुरक्षित मानते हुए भारत की जगह अमेरिका व विकसित देशों में निवेश को प्राथमिकता भी दे रहे हैं ।  गौरतलब है कि अभी भी दुनिया में डॉलर सबसे मजबूत मुद्रा है। दुनिया का करीब 85 फीसदी व्यापार डॉलर की मदद से होता है। साथ ही दुनिया के 39 फीसदी कर्ज डॉलर में दिए जाते हैं । इसके अलावा कुल डॉलर का करीब 65 फीसदी उपयोग अमेरिका के बाहर होता है । चूंकि भारत अपनी क्रूड आयल की करीब 80-85 फीसदी जरूरतों के लिए व्यापक रूप से आयात पर निर्भर है। रूस यूक्रेन युद्ध के मद्देनजर कच्चे तेल और अन्य कमोडिटीज की कीमतों में बढ़ोतरी की वजह से भारत के द्वारा अधिक डॉलर खर्च करने पड़ रहे हैं । साथ ही देश में कोयला, उवर्रक, वनस्पति तेल, दवाई के कच्चे माल, केमिकल्स आदि का आयात लगातार बढ़ता जा रहा है । ऐसे में डॉलर की जरूरत और ज्यादा बढ़ गई है। स्थिति यह है कि भारत जितना निर्यात करता है, उससे अधिक वस्तुओं और सेवाओं का आयात करता है। इससे देश का व्यापार संतुलन लगातार प्रतिकूल होता जा रहा है । नि:संदेह कमजोर होते रुपए की स्थिति से सरकार और रिजर्व बैंक दोनों चिन्तित हैं और इस चिन्ता को दूर करने के लिए यथोचित कदम भी उठा रहे हैं । रिजर्व बैंक ने रुपए में तेज उतार-चढ़ाव और अस्थिरता को कम करने के लिए यथोचित कदम उठाए हैं और आरबीआई द्वारा उठाए गए ऐसे कदमों से रुपए की तेज गिरावट को थामने में मदद मिली है । आरबीआई ने कहा है कि अब वह रुपये की विनिमय दर में तेज उतार-चढ़ाव की अनुमति नहीं देगा । आरबीआई का कहना है कि विदेशी मुद्रा भण्डार का उपयुक्त उपयोग रुपए की गिरावट को थामने में किया जायेगा। अब आरबीआई ने विदेशों से विदेशी मुद्रा का प्रवाह देश की ओर बढ़ाने और रुपये में गिरावट को थामने, सरकारी बांड में विदेशी निवेश के मानदण्ड को उदार बनाने और कंपनियों के लिए विदेशी उधार सीमा में वृद्धि सहित कई उपायों की घोषणा की है । ऐसे उपायों से एफआईआई पर अनुकूल कुछ असर पड़ा है । इस समय रुपए की कीमत में गिरावट को रोकने के लिए और अधिक उपायों की जरूरत है । इस समय डॉलर के खर्च में कमी और डॉलर की आवक बढ़ाने के रणनीतिक उपाय जरूरी हैं । अब रुपये में वैश्विक कारोबार बढ़ाने के मौके को मु_ियों में लेना होगा । भारतीय 1 रिजर्व बैंक के द्वारा भारत और अन्य देशों के बीच व्यापारिक सौदों का निपटान रुपये में किये जाने सम्बन्धी महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया है । विगत 11 जुलाई को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के द्वारा भारत व अन्य देशों के बीच व्यापारिक सौदों का निपटान रुपये में किए जाने संबंधी निर्णय के बाद इस समय डॉलर संकट का सामना कर रहे रूस, इंडोनेशिया, श्रीलंका, ईरान, एशिया और अफ्रीका के साथ विदेशी व्यापार के लिए डॉलर के बजाय रुपए में भुगतान को बढ़ावा देने की नई संभावनाएं सामने खड़ी हुई दिखाई दे रही हैं । हाल ही में 7 सितंबर को वित्त मंत्रालय ने सभी हितधारकों के साथ आयोजित बैठक में निर्धारित किया कि बैंकों के द्वारा दो व्यापारिक साझेदार देशों, की मुद्राओं की विनिमय दर बाजार आधार’ पर निर्धारित की जायेगी ।

Chauri Chaura Times

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button