लखनऊ/महाकुंभ नगर 21 फरवरी (वार्ता) महाकुंभ के दौरान त्रिवेणी के जल में प्रदूषण को लेकर गरमायी सियासत श्रद्धालुओं को रास नहीं आ रही है।
संगम में पवित्र डुबकी लगा कर अपने घरों को लौट चुके और संगम घाट पर स्नान करने वाले श्रद्धालुओं का कहना है कि राजनेता अथवा कथित समाजसेवी संगम के जल के प्रदूषण पर बयानबाजी से बाज आयें और अपने क्षेत्र में पेयजल और अन्य समस्यायों पर ध्यान दें। महाकुंभ सनातन धर्म की आस्था का विषय है। गंगा को वे मां मानते हैं और मां का आंचल कभी मैला नहीं होता। हर शुभ संस्कार और यहां तक कि मृत्यु के समय भी गंगा जल का उपयोग हर सनातनी करता है। फिर वह हरिद्वार,प्रयारागज अथवा काशी से लाया गया जल हो या फिर कानपुर में बह रही गंगा का हो।
पुराने लखनऊ के अमीनाबाद क्षेत्र निवासी राजकुमार ने कहा कि महाकुंभ हजारों वर्षो से तीर्थराज में आयोजित किया जाता रहा है। लोग अपनी श्रद्धा से इस महापर्व में हिस्सा लेतें हैं। संगम तट पर एक माह तक कल्पवास कर आत्मशुद्धि करते हैं। अब जब एक स्नान पर्व महाशिवरात्रि का बचा है तो प्रदूषण की बात कर श्रद्धालुओं को भ्रमित करने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है जो कतई स्वीकार्य नहीं है।
समाजसेवी अनंत भारद्वाज का कहना है कि महाकुंभ जब अपने अंतिम पड़ाव में है, तो यह कहना कि संगम का जल स्नान करने और आचमन योग्य नहीं है,बचकाना लगता है। लाखों लाख हिंदू पवित्र नदियों की आदि काल से पूजा करते आ रहे हैं और संगम में स्नान कर खुद को धन्य मानते हैं। अगर किसी भी सरकारी अथवा गैर सरकारी संस्था को गंगा का जल अशुद्ध लगता है तो इसे कुंभ शुरु होने से पहले जांच परख लेना था और इसे स्वच्छ करने के उपाय करने थे। गंगा जल की शुद्धता को लेकर इस समय अनर्गल बयान सनातन की आस्था पर प्रहार है जिसे कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता।
महाकुंभ के अवसर पर स्नान कर प्रयागराज जंक्शन में अपनी ट्रेन का इंतजार कर रही गृहणी बिहार की अनुपमा राय ने कहा कि गंगा,यमुना और सरस्वती की त्रिवेणी पर पुण्य स्नान की डुबकी लगा रहे लोगों को जल की शुद्धता पर जारी बहस से कोई सरोकार नहीं है और न ही इससे हमारी आस्था पर कोई आंच आयी है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है कि लाखों श्रद्धालु रात दिन संगम में डुबकी लगा रहे हैं। संगम में प्रदूषण पर सवाल खड़ा करने वाले नेता वास्तव में अपना जनाधार खो रहे हैं और इससे उनकी लोकप्रियता में गिरावट आना तय है।