तारीख पर तारीख
(अजय दीक्षित)
भारत की अदालतों में सभी स्तर पर बरसों से मुकदमे लम्बित रहते हैं । ऐसे भी उदाहरण हैं कि मुकदमा दादा के समय शुरु होता है और पौत्र के समय खत्म होता है । अभी हाल में नये मुख्य न्यायाधीश ने कहा है कि आधे से ज्यादा मुकदमे सरकार के गलत निर्णय के कारण होते हैं । प्राय: सर्विस मैटर के मुकदमे होने ही नहीं चाहिए यदि अधिकारी कर्मचारी की बात को ध्यान से सुन कर न्यायोचित निर्णय करें । पहले पंच प्रथा थी । अंग्रेजों के आगमन से पहले भारत में पंचायतें में फैसला करती थीं । रिकार्ड बतलाते हैं कि उन्हें मृत्युदण्ड तक देने का अधिकार था साक्ष्य क पुख्ता इंतजाम था । यह प्रणाली त्वरित और कम खर्च वाली थी । अंग्रेजों के आगमन के बाद भारत में जो न्याय व्यवस्था चली, वह बहुत कुछ ब्रिटिश प्रणाली पर थी । ब्रिटेन एक बहुत छोटा देश है । वैसे भी हम कुछ भी कहें ब्रिटिश लोग न्याय और सद्भाव से रहने वाले लोग हैं । हमारे यहां तो छोटी सी छोटी बात पर भी गोली चल जाती है ।
भारत में ब्रिटेन से जो न्याय व्यवस्था ली गई है, कई स्तरीय है । पहले जिले में सिंगल जज के यहां मुकदमा चलेगा, उसकी अपील डबल बेंच में की जा सकती है । फिर हाई कोर्ट सिंगल जज, फिर हाई कोर्ट डबल जज, फिर सुप्रीम कोर्ट, फिर राष्ट्रपति के यहां अपील । यदि किसी अपराधी ने राष्ट्रपति के यहां अपील कर रखी है तो सजा स्थिगित रहती है । राष्ट्रपति के यहां बहुत देर से निर्णय आते हैं । हमारी जेलों में अण्डर ट्रायलों की भरमार है यानि ऐसे कैदी जिनके मामले में फैसला नहीं आया है, या कभी अदालत में केस ही शुरू नहीं हुआ है । प्रधानमंत्री से लेकर कानून मंत्री, लॉ कमीशन और मुख्य न्यायाधीश, न्यायाधीश समस्या तो उठाते हैं, परन्तु उसमें कोई निर्णय नहीं लिया जाता और भारतीय जेलें अण्डर ट्रायलों से भरी रहती हैं । फिर हमारे यहां फैसले देने की गति बहुत धीमी है । भारत में डेढ़ करोड़ क्रिमिनल केस पेन्डिंग हैं । इनमें से 34 प्रतिशत तीन साल से ज्यादा पुराने हैं । आई.पी.सी. के अन्तर्गत क्रिमिनल खेलों की यह स्थिति है :-
3 से 6 महीने पुराने -12 प्रतिशत
6 से 1 साल पुराने -18 प्रतिशत
1 से 3 साल पुराने – 53 प्रतिशत
सन् 2021 तक विभिन्न अदालतों में पेन्डिंग केसों की यह स्थिति हैं :-
*मारपीट – 41 प्रतिशत
*लापरवाही से गाड़ी चलाने पर मृत्यु -36 प्रतिशत
*बलात्कार – 40 प्रतिशत
* हत्या का प्रयास – 27 प्रतिशत
* अपहरण – 30 प्रतिशत
* आत्महत्या के लिए उकसाना – 23 प्रतिशत
* दहेज़ प्रताडऩा – 45 प्रतिशत
* हत्या – 35 प्रतिशत
विभिन्न राज्यों में सजा का प्रतिशत (कुल केसों की तुलना में)
* उड़ीसा – 5 प्रतिशत
* पश्चिम बंगाल – 6 प्रतिशत
* गुजरात – 21 प्रतिशत
* झारखण्ड – 41 प्रतिशत
* हरियाणा – 42 प्रतिशत
* कर्नाटक – 50 प्रतिशत
* मध्यप्रदेश – 53 प्रतिशत
* महाराष्ट्र – 54 प्रतिशत
* राजस्थान – 56 प्रतिशत
* पंजाब – 61 प्रतिशत
* उत्तर प्रदेश – 63 प्रतिशत
* तमिलनाडु – 73 प्रतिशत
* जम्मू कश्मीर – 77 प्रतिशत
* आन्ध्र प्रदेश – 84 प्रतिशत
केरल और दिल्ली में सजा का प्रतिशत सबसे ज्यादा 86 प्रतिशत है ।
भारत में कानून व्यवस्था में सुधार को लेकर बहुत से आयोग बने हैं । परन्तु हालात में सुधार नहीं हुआ है । सन् 2013 में न्याय व्यवस्था में सुधार को लेकर जस्टिस वी.एस. मल्लिमथ ने कहा था कि कोई भी सुझाव मानें नहीं जाते और फिर नया आयोग फिर शुरू से शुरुवात करवाता है । यह है भारत की 75 वर्ष की स्वतंत्रता का इतिहास ।