भाजपा ने शुरू की ओबीसी राजनीति
अजय दीक्षित
भारतीय जनता पार्टी की राजनीति में नीतीश कुमार इफेक्ट दिखने लगा है। जब से नीतीश कुमार भाजपा से अलग हुए हैं और अगले लोकसभा चुनाव में उनके विपक्ष का साझा उम्मीदवार बनने की चर्चा शुरू हुई है तब से भाजपा सावधान हो गई है। वैसे तो भाजपा के पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रूप में नीतीश कुमार से ज्यादा बड़ा पिछड़ा चेहरा है इसक बावजूद भाजपा अन्य पिछड़ी जातियों यानी ओबीसी की राजनीति पर फोकस कर रही है। दो महीने पहले ही 30-31 जुलाई को पटना में भाजपा के सभी सात मोर्चों की बैठक हुई थी, लेकिन नीतीश कुमार के अलग होने के बाद भाजपा ने ओबीसी मोर्चे की अलग बैठक बुलाई। आठ से 10 सितंबर तक राजस्थान के जोधपुर में भाजपा ओबीसी मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई, जिसके समापन कार्यक्रम में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी शामिल हुए।
उससे पहले भाजपा ने अपनी सर्वोच्च ईकाई संसदीय बोर्ड का पुनर्गठन किया तो पार्टी के ओबीसी मोर्चा के अध्यक्ष के लक्ष्मण को उसमें शामिल किया गया। इसी साल पार्टी ने उनको उत्तर प्रदेश से राज्यसभा में भी भेजा है। ओबीसी मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के बाद अब पार्टी का पूरा फोकस ओबीसी समुदाय के बीच जाने और उन्हें यह बताने का है कि प्रधानमंत्री मोदी उनके लिए क्या कर रहे हैं। लक्ष्मण ने कहा है कि इसकी शुरुआत गुजरात और हिमाचल प्रदेश से होगी, जहां अगले दो-तीन महीने में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। भाजपा इस बात का प्रचार कर रही है कि प्रधानमंत्री मोदी ने ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया। उत्तर प्रदेश की 17 ओबीसी जातियों को एससी में शामिल करने का फैसला किया गया था, लेकिन अदालत ने उसे खारिज कर दिया है क्योंकि एससी की सूची में बदलाव का अधिकार सिर्फ केंद्र को है। सो, उम्मीद की जा रही है कि जल्दी ही केंद्र यूपी सरकार के इस प्रस्ताव को मंजूरी देगा।