प्रगतिशील जीव स्वस्थ, ज्ञान वान और क्रियाशील होता है
प्रगतिशील जीव स्वस्थ, ज्ञान वान और क्रियाशील होता है
(प्र केतुना बृहता यात्यन्गिरा रोदसी वृषभो रोरवीति! दिवाश्चिदन्तादुपमामुदानडपामुपस्थे महिला ववर्ध!)
साम -७१-९
व्याख्या अग्निं अपने जीवन को प्रगतिशील बनाकर अग्निं नाम से पुकारा जाने वाला व्यक्ति बृहता सब प्रकार की वृद्धि के कारण भूत केतुना नीरोगिता के साथ
प्रयाति उत्तम प्रकार से जीवन यात्रा में चलता है! स्वास्थ्य के बिना किसी भी पुरुषार्थ की प्राप्ति सम्भव नहीं है! अतः यह अग्निं अपने स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखता है! यह पथ्य का ही सेवन करता है!
२- यह अग्निं स्वस्थ बनकर रोदसी द्युलोक से पृथिवी लोक तक सभी के लिए वृषभ: सुखों की वर्षा करने वाला होकर आ रोरवीति खूब उपदेश देता है! ३- यह अग्निं लोगों को ज्ञान देने के लिए स्वयं दिव: ज्ञान के अन्तात्
पहले सिरों को तथा उपमाम् चित् समीप के सिरों को उदानट् व्याप्त करता है! सरस्वती ज्ञान की देवता जब एक नदी के रुप में चित्रित की जाती है, तब सृष्टि विद्या उसका उरला किनारा होता है और ब्रह्म विद्या पर ला! यह अग्निं दोनों किनारों को व्याप्त करने का प्रयत्न करता है! वह यह समझता है कि अलग अलग यह दोनों विद्यायें अंधकार में ले जाने वाली है! इनका मेल ही नि:श्रेयस को सिद्ध करता है! ४- इस प्रकार विज्ञान व
ब्रह्म ज्ञान को अपनाकर अग्निं अपाम् उपस्थे ववर्थ कर्मों की गोद में आगे और आगे बढता है! ज्ञानी बनकर वह सदा क्रियाशील होता है! वह लोकहित के लिए सदा कर्मों में लगा रहता है अतः वह लोकों का पूजनीय होता है!
मन्त्र का भाव है कि- इस अग्निं का लक्ष्य उत्तम ज्ञान के द्वारा त्रिविध दुखों को शीर्ण (नष्ट) करना होता है! और इसी से इस मन्त्र का ऋषि त्रिशिरा: कहलाता है!
सुमन भल्ला