आधुनिक दासता के शिकार लोगों की संख्या में पिछले पांच वर्षों में वृद्धि
नयी दिल्ली,अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन और संबंधित संगठनों की एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक कार्यबल का एक बड़ा हिस्सा उन घरेलू श्रमिकों का है, जोकि अनौपचारिक रोज़गार पर निर्भर हैं। वर्ष 2021 में पाँच करोड़ लोग दासता के आधुनिक रूपों में रहने के लिये मजबूर थे और पिछले पांच वर्षों में इस संख्या में वृद्धि हुई है। इनमें से दो करोड़ 80 लाख लोग जबरन श्रम और दो करोड़ 20 लाख जबरन विवाह के पीड़ित हैं।
रिपोर्ट के अनुसार आधुनिक दासता के शिकार लोगों की संख्या में पिछले पांच वर्षों में वृद्धि हुई है। वर्ष 2016 की तुलना में वर्ष 2021 में एक करोड़ अतिरिक्त लोग आधुनिक दासता का शिकार हुए हैं। महिलाएं और बच्चे इस समस्या से सर्वाधिक प्रभावित होते हैं।
संयुक्त राष्ट्र श्रम संस्थान अन्तरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन और ‘वाक फ्री ’ नामक मानवाधिकार संगठन ने साझा रूप से ‘ वैश्विक आधुनिक दासता ‘ नामक रिपोर्ट प्रकाशित की है। आधुनिक दासता से तात्पर्य, शोषण की उन परिस्थितियों से है जहाँ कोई व्यक्ति धमकियों, हिंसा, दबाव, धोखे या ताक़त के दुरुपयोग के कारण न तो काम से मना कर सकते हैं और न ही काम छोड़ कर जा सकते हैं। रिपोर्ट बताती है कि आधुनिक दासता के मामले विश्व के लगभग हर देश में सामने आते हैं और ये जातीय, सांस्कृतिक और धार्मिक सीमाओं से परे हैं । जबरन श्रम के कुल मामलों में से 52 प्रतिशत और जबरन विवाह के क़रीब 25 फ़ीसदी मामले, ऊपरी-मध्य आय या उच्च-आय वाले देशों में दर्ज किये गए हैं। अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन के महानिदेशक गाय राइडर ने रिपोर्ट के निष्कर्षों पर क्षोभ व्यक्त करते हुए कहा, “यह स्तब्धकारी है कि आधुनिक दासता के हालात में सुधार नहीं हो रहा है। बुनियादी मानवाधिकारों के साथ इस दुर्व्यवहार को किसी भी प्रकार से न्यायसंगत नहीं ठहराया जा सकता।”
जबरन श्रम जबरन श्रम के अधिकांश मामले 86 प्रतिशत निजी क्षेत्र में सामने आते हैं। धन के लेनदेन से जुड़े यौन शोषण से इतर अन्य क्षेत्र में जबरन श्रम, ऐसे कुल मामलों का 63 प्रतिशत है। धन के लेनदेन वाले यौन शोषण के लिये मजबूर किये जाने के मामले, सभी जबरन श्रम मामलों का 23 प्रतिशत है और इनमें हर पाँच में चार पीड़ित महिलाएँ या लड़कियाँ हैं। जबरन श्रम का शिकार लोगों की कुल संख्या में से क़रीब 14 फ़ीसदी, सरकारों की थोपी जाने वाली जबरन मज़दूरी का शिकार हैं। जबरन मज़दूरी के हर आठ मामलों में से एक पीड़ित बच्चा है, जिनमें से आधे से अधिक मामले धन के लेनदेन वाले यौन शोषण से जुड़े हैं। जबरन विवाह रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2021 में क़रीब दो करोड़ 20 लाख लोग जबरन विवाहित के रूप में अपना जीवन गुज़ार रहे थे, जोकि वर्ष 2016 की तुलना में 66 लाख की वृद्धि को दर्शाता है। विशेषज्ञों ने जबरन विवाह के वास्तविक मामलों की संख्या, वर्तमान अनुमान से कहीं अधिक होने की आशंका जताई है। विशेष रूप से 16 वर्ष और उससे कम उम्र के बच्चों के लिये यह अधिक है। बाल विवाह को जबरन कराई गई शादी के तौर पर देखा जाता है, चूँकि कोई भी बच्चे क़ानूनी रूप से अपनी शादी के लिये सहमति नहीं दे सकते हैं। जबरन विवाह के लिये लम्बे समय से चले आ रहे पितृसत्तात्मक रवैयों और प्रथाओं को ज़िम्मेदार बताया गया है और इनमें से अधिकांश मामले पारिवारिक दबाव के कारण होते हैं। क्षेत्रीय आबादी के आधार पर, जबरन शादी कराए जाने के दो-तिहाई (65 प्रतिशत) मामले एशिया-प्रशान्त क्षेत्र में दर्ज हुए हैं, मगर अरब देश इससे सर्वाधिक प्रभावित हैं। इस क्षेत्र में हर एक हज़ार में 4.8 लोग जबरन विवाहित हैं।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार कोविड-19 महामारी के कारण घरेलू कर्मचारियों के लिये स्थिति और भी कठिन हुई है। प्रवासियों के लिये जोखिम अध्ययन के अनुसार, प्रवासी कामगारों पर जबरन मज़दूरी का शिकार होने का जोखिम, अन्य वयस्क कामगारों की तुलना में तीन गुना अधिक होता है। बताया गया है कि श्रमिकों के प्रवासन से व्यक्तियों, घर-परिवारों, समुदायों और समाजों पर सकारात्मक असर हुआ है, मगर प्रवासियों के लिये जबरन मज़दूरी और तस्करी का शिकार होने का जोखिम अधिक होता है। रिपोर्ट में अनेक सिफ़ारिशें भी प्रस्तुत की गई है, जिनके ज़रिये आधुनिक दासता का अन्त करने की दिशा में ठोस प्रगति सुनिश्चित की जा सकती है। इनमें श्रम निरीक्षण और क़ानूनों में सुधार और बेहतर ढंग से लागू करना, सरकार की थोपी गई जबरन मज़दूरी का अन्त किया जाना, व्यवसाय और आपूर्ति श्रृंखला में जबरन श्रम और तस्करी से निपटने के लिये मज़बूत उपाय अपनाना, सामाजिक संरक्षा के दायरे में विस्तार और क़ानूनी संरक्षण को मज़बूती देना, विवाह के लिये क़ानूनी आयु को बिना किसी अपवाद के 18 वर्ष तक बढ़ाना शामिल हैं।
अन्य उपायों में, प्रवासी कामगारों के लिये जबरन श्रम और तस्करी के जोखिम से मुक़ाबले के लिये उपाय सुझाए गए हैं। इसके तहत, निष्पक्ष और उचित भर्ती प्रक्रिया तथा महिलाओं, लड़कियों एवं निर्बल व्यक्तियों के लिये समर्थन बढ़ाना होगा।